कल अचानक याद आई
वो डायरी
जो रखी थी
मेज की दराज में
आज भी संजोयी रखी थी
उसमें
तुम्हारी जेठ में कुम्भ्लाई काया!
आज भी महकता है
आसाढ़ का वो चमकता दिन
हमारी पहली मुलाकात का
तुम्हारी चटकती मुस्कान का !
सहेजे रखे है,
बरसात के भींगे दिन
लिपटी पड़ी है
भादो की गरजती रातें !
रखे है अनमोल पल
जो कातिकी के मेले में
तुम्हारे साथ बिताये !
और
रखी है पूस की
ठिठुरती काली रात
बंद कमरे का वो
एकांकीपन
डायरी के कुछ पन्ने
फटे पड़े है
रखे है उसमें
पतझर के वो झरते सपने !
कुछ पन्ने अब भी अधूरे है
उन्हें इन्तजार है,
फागुन में
तुम्हारे स्पर्श के
हरे भरे एहसास का !!!!
dairy ke paano se lajwaab rachna nikli hai
ReplyDelete..............behreen prastuti siddharth ji
Thanks sanjay bhai.........
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत एहसास से लबरेज रचना...मुझे बहुत पसंद आई.
ReplyDeleteसारे मौसमों का सार संरक्षित है इसमें।
ReplyDeleteThanks Vidhya ji and Praveen Bhai........
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत एहसास हैं
ReplyDeleteजीवन के हर मौसम का रंग लिए पन्ने ..... बहुत सुंदर
ReplyDeleteबेहद सुन्दर प्रकृति के माध्यम से यादों के भावपूर्ण संसार में डूबता उतरता मन....शुभ कामनायें !!!
ReplyDeleteखुबसूरत एहसास बेहतरीन प्रस्तुती....
ReplyDeleteसुन्दर एहसास भावपूर्ण प्रस्तुती....
ReplyDeleteसादर बधाई....
आज 10 - 11 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
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बहुत ही अच्छा लिखा है सर!
ReplyDeleteसादर
वाह अहसासो को बहुत खूब संजोया है।
ReplyDeleteसुंदर कोमल एहसासों से भरे डायरी के पन्ने ...
ReplyDeleteसुन्दर एहसास संरक्षित रहें सदा!
ReplyDeleteशुभकामनाएं!
बहुत ही भावपूर्ण कविता
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण कविता
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण कविता
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण कविता
ReplyDeleteबहुत कुछ समेटा है डायरी में ...
ReplyDeletewahh..
ReplyDeletebehatarin prastuti...
ख़ूबसूरत अहसासों की सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteबधाई.
Sangeeta ji,Dr.Sahiba,Sriprakash ji,Sushma ji,habib ji,Yashwant Ji,Vandana ji,Girija ji,Reena ji,Kailash ji,Rachna ji,aap sabhi ka dhanyawaad..........aapne pasand kiya.........
ReplyDeletebahut komal ehsaso ki dayri.
ReplyDeletesunder abhivyakti.