हुयी सुख कर जो कांटा थी
अब अधियाती है
बड़ी किरपा की अरे राम जी
नदी नहाती है !
गीले हुए रेत के कपडे
सजल हुए तटबंद
छल-छल करके हरे हो गए
कल के सब सम्बन्ध
अपना सुख -दुख लहर लहर से
बनते जाती है !
बड़ी किरपा की अरे राम जी
नदी नहाती है !
शुरू हो गयी वोही कहानी
होठ लगे हिलने
अपनी गागर ले कर चल दी
सागर से मिलने !
सुनती नहीं किसी की
बात बनाती है !
बड़ी किरपा की अरे राम जी
नदी नहाती है !
खूब सताया सूखे जेठ ने
तरस नहीं आया
तब इस पर क्या गुजरी
सागर जान नहीं पाया
कोई शिकवा नहीं ,प्यार का
धर्म निभाती है!!!
बड़ी किरपा की अरे राम जी
नदी नहाती है !!!!!
किरणों का लहरों से खेलना तो सुना था, नहाने का विचार प्रभावित कर गया।
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