तुमने डाली है प्रेम की ऐसी नजर ,
की मेरा गीत निखरने लगा है !
भवन जीवन का बन गया था खंडहर
की तेरे इशारे से फिर सवरने लगा है !
सब दिशाओं में मच रहा था बवंडर
तेरी हूक से सब कुछ ठहरने लगा है !
मैं गिर गया था घोर तमस में
तेरी वाणी से पथ जिलमिलाने लगा है !
चल दिया था मैं भी बनने सिकंदर
भीतर प्रेम का ज्योत जलने लाना है !
मेरा दिल बन गया उदासी का समंदर
तुने गुदगुदाया तो रोम रोम महकने लगा है !
दुखो ने बनाया था मौत का तलबगार इस कदर
बने जो नील कंठ तुम,दिल फिर जीने को मचल रहा है !!!
बहुत खूब, जीवन ऐसे ही अनुप्राणित रहे।
ReplyDeleteThanks Praveen bhai.....
Deleteबहुत ही खुबसूरत और प्यारी रचना.....
ReplyDeleteThanks shushma ji
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