Thursday, July 19, 2012

प्रेम की नजर


तुमने डाली है प्रेम की ऐसी नजर ,


की मेरा गीत निखरने लगा है !


भवन जीवन का बन गया था खंडहर 


की तेरे इशारे से फिर सवरने लगा है !


सब दिशाओं में मच रहा था बवंडर 


तेरी हूक से सब कुछ ठहरने लगा है !


मैं गिर गया था घोर तमस में 


तेरी वाणी से पथ जिलमिलाने लगा है !


चल दिया था मैं भी बनने सिकंदर 


भीतर प्रेम का ज्योत जलने लाना है !


मेरा दिल बन गया उदासी का समंदर 


तुने गुदगुदाया तो रोम रोम महकने लगा है !


दुखो ने बनाया था मौत का तलबगार इस कदर 


बने जो नील कंठ तुम,दिल फिर जीने को मचल रहा है !!!

4 comments:

  1. बहुत खूब, जीवन ऐसे ही अनुप्राणित रहे।

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  2. बहुत ही खुबसूरत और प्यारी रचना.....

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