बहुत दिनों से इच्छा थी
की तुम्हारे लिए
खरीद दू
एक कामचलाऊ मगर
सस्ता सा छाता
चिल्चाती धुप के बीच
तुम्हे आना जाना पड़ता है
जिसकी वजह से
पसीने से भींग कर
कुम्हला जाता है
तुम्हारा गुलाबी चेहरा
आज दोपहर में जब
तुम स्टैंड पर खड़ी थी
कर रही थी इन्तजार
बस का
और सूरज नोच रहा था
तुम्हारा बदन
तब मैं यही सब सोच रहा था
की अचानक एक काली बदली
भटकती हुयी सी आई जाने कहा से
और छाता बनकर तन गयी
तुम्हारे उपर
मैं बहुत खुश था
की मेरी इच्छा पूरी हो गयी
तुम भी तो खुश थी बहुत
जैसे महक उठा हो
गुलाब कोई !!!!!
बेहतरीन अभिव्यक्ति.....
ReplyDeleteबहुत ही प्यारी रचना..
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