Tuesday, August 24, 2010

चोट


माँ की तर्जनी पकड़ कर
नन्हा पांव अकड़ कर
चल पड़ा
उत्साह बढ़ा होगा
कुछ दूर चला होगा
की रस्ते के पत्थर से टकरा गया
उंगली छुट गयी सर चकरा गया
अरुण वर्ण मुख चन्द्र से
करुण किलकारी निकल गयी

नवनिर्मित लहू बाहर छलक पड़ा
माँ का चेहरा सिकुर्ड़ने लगा
वात्सल्य उमर्दने लगा
और,
आँख से आंसू ढुलक पड़ा
ऐसा लगा जैसे
सिर्फ मासूम अस्तित्व को ही नहीं
अपितु नवोद ममत्व को भी कही चोट लग गयी....
और ममता की दुनिया मोम सी पिघल गयी.........

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