Sunday, June 19, 2011

जिनसे थे धनवान पिता !

जब तक थे साथ हमारे ,लगते थे इंसान पिता
जाना ये जब दूर हो गए ,सच में थे भगवान् पिता !


पल पल उनकी गोद में पलकर भी हम ये ना जान सके

मेरी एक हसी पर कैसे ,होते थे कुर्बान पिता !


बैठ सिरहाने मेरे गुजरी उनकी जाने रातें कितनी

मेरी जान बचाने खातिर ,दाव लगाते जान पिता !


सर पर रखकर हाथ कापता ,भरते आशीष की झोली

मेरे सौ अपराधो से भी बनते थे अनजान पिता !


पढ़ लिख भी कौन सा बेटा ,बना बुढ़ापे की लाठी?
घोर स्वार्थी कलयुग में भी,कितने थे नादान पिता!


पीड़ा -दुःख आंशु तकलीफे और थकन बूढ़े पाँव की !
मेरे नाम नहीं वो लिख गए जिनसे थे धनवान पिता !


बाट-निहारे रोज निगाहे ,लौट के उनके घर आने की

जाने कौन दिशा में ऐसी,कर गए है प्रस्थान पिता !!!!!

3 comments:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति ..पिता कि याद में खूबसूरत रचना

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  2. पिता की याद में इतनी संवेदनशील और बेहतरीन रचना पहले नहीं पढ़ी ... बहुत अच्छी गज़ल है ...

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  3. सच में माता-पिता भगवान होते हैं...
    बेहतरीन रचना...

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