हम उनके नाचने में कमी ढूंढते रहे !
वे मेरे अंगने में कमी ढूंढते रहे !!
चेहरे पर अपने एतबार इतना था हमे !
हम अपने आईने में कमी ढूंढते रहे !!
अपनी कमाई जिनके बीच बांटता रहा !
वो मेरे बाँटने में कमी ढूंढते रहे !!
जिनके पालने में झूल-झूल कर बड़े हुए !
फिर अपने पालने में कमी ढूंढते रहे !!
बेटी का हाथ थाम लिया बिन दहेज़ के !
सब लोग पाहुन(बेटी का पति)में कमी ढूंढते रहे !!
वो प्यार के सिखा गए हम को मायने !
हम उनके मायने में कमी ढूंढते रहे !!
व्यवहारिक बात कहती बेहतरीन रचना.
ReplyDeleteसादर
kamiyan hi dhoondte rahenge to jindgi khud ko nakara lagne lagegi..soch badal leni chaahiye.
ReplyDeletesunder abhivyakti.
लोंग दूसरों की कमियां ही निकालने में लगे रहते हैं ..सटीक बात कही है
ReplyDeleteइसी कमी निकालने की आदतें कम होनी चाहिये।
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