
जब भी मैं इस शहर में कमरे से मैं बाहर निकला !
मेरे स्वागत में हरेक जेब से खंजर निकला !!
तितलियों -फूलो का लगता था जहा पर मेला !
प्यार का गाव वो बारूद का दफ्तर निकला !!
डूब कर जिसमें उबर पाया ना मैं जीवनभर !
एक आंसू का वो कतरा तो समंदर निकला !!
मेरे होठो पर दुआ,उसकी जुबान पर गाली !
जिसके अन्दर जो छिपा था वो निकला !!
जिन्दगी भर मैं जिसे देखकर इतराता रहा !
मेरा सबकुछ वो मिटटी की धरोहर निकला !!
क्या अजब चीज है इंसान का दिल भी "सिद्धार्थ" !
मोम निकला ये कभी तो कभी पत्थर निकला !!