वोही डूबा हुआ पाया गया हू !!
बला(मुसीबत) काफी ना थी एक जिन्दगी की !
दुबारा याद फ़रमाया गया हू !!
सुपुर्द-ऐ-ख़ाक(दफनाना) ही करना है मुझको !
तो फिर काहे को नहलाया गया हू !!
गोहरबार(मोती का पानी) हू मैं !
मगर आँखों से बरसाया गया हू !!
"सिद्धार्थ"अहले जब कब मानते है !
बड़े जोरो से मनवाया गया हू !!
बहुत खूबसूरती से लिखा है
ReplyDeleteक्या कहूँ इस पर ऐसा लगा दिल निकाल कर रख दिया हो।
ReplyDeleteबहुत खूब दोस्त जी :)
ReplyDeleteबहुत खूब।
ReplyDeleteअच्छी रचना...
ReplyDeleteAap sabhi ka dhanyawaad.......
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