Wednesday, November 2, 2011

रिश्तो के परे जिन्दगी

एक दिन मैंने देखा

की ट्रेन में झाड़ू देने वाला बच्चा बेहद खुश था

फर्श बुहार रहा था

और तन्मयता से एक गीत भी गा रहा था

मुझे उसपर बहुत प्यार आया

जब पूरी सफाई कर

हाथ पसारे मेरे पास आया

मैंने एक सिक्का देते हुए नाम पूछा

उसने कहा 'नहीं मालूम'

मैंने उसके घर के बारे में पूछा

उसने कहा 'नहीं मालूम'

मैंने उसके पिता का नाम पूछा

उसने कहा 'नहीं मालूम'

मैं पा गया उसके खुश रहने का कारण

मुझे सब कुछ मालूम था

मुझे हो आया अपना दुःख स्मरण!

5 comments:

  1. उपाधियों में छिपा हमारा भविष्य।

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  2. ना मालूम मे ही सारा सुख समाहित है।

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  3. man ko chu lene vali baat hai . na jaanane ka sukh .................

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  4. कभी कभी कितना बौना हो जाता है इंसान ऐसी मस्ती देख कर अपने दुःख का एहसास होता है ...

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  5. मार्मिक सत्य की अनुभूति कविता की विशेषता है!
    सुन्दर!

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