Monday, November 28, 2011

मैं औरत हू

मैं औरत हू
मुझे मालूम है प्रसव वेदना
सारी अजीयत भूल जाती हू पुत्र को जन्म दे कर
और खुद पुत्री के जन्म पर दुखी हो जाती हू
मैं औरत हू
दो मुट्ठी भात और कपडे के लिए
मुझे हाट -बाजार में बेचा जाता है
और हर जन्म में
पतिवर्त धर्म का पालन करना है
अग्नि-परीछा देनी है
जिन्दगी के रंगमंच पर
कभी माँ तो कभी बहिन
तो कभी एक भावुक -सी
प्रेमिका का अभिनय करना है !!!!

4 comments:

  1. एक अलग ही संसार है, भावों का अलग समंदर है।

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  2. अच्छी अभिव्यक्ति ..

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  3. भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

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  4. बेहतरीन भावाभिवय्क्ति.....

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