Saturday, November 5, 2011

दामन

जिगर और दिल को बचाना भी है !
नजर आप से ही मिलाना भी है !!

मोहोब्बत का हर भेद पाना भी है !
मगर अपना दामन बचाना भी है !!

जो दिल तेरे गम का निशाना भी है !
कतील-जफा-ऐ-जमाना भी है !!

खिरद की एतात जरुरी सही !
यही तो जूनू का जमाना भी है!!

मुझे आज साहिल पर रोने भी दो!
की तूफान में मुस्कुराना भी है !!

ज़माने से आगे तो बढिए "सिद्धार्थ"!
ज़माने को आगे बढ़ाना भी है !!

3 comments:

  1. बहुत खूब, कुछ राह दिखे, कुछ राह बने।

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  2. Thanks Praveen Bhai and vidhya ji......aaplogo ke liye hi likha gaya tha aapne pasand kiya likhna safal raha.........

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