Friday, August 27, 2010

अब मैं सूरज को डूबने नहीं दूंगा


अब मैं सूरज को डूबने नहीं दूंगा
देखो,मैंने कंधे चौड़े कर लिए है !!
मुठिया मजबूत कर ली है!
और ढलान पर एड़ियाँ जमाकर
खड़े होना मैंने सीख लिया है !

घबराओ मत
मैं छीतिज पर जा रहा हु!
सूरज ठीक जब पहाड़ी से लुदकने लगेगा !
मैं कंधे अड़ा दूंगा ! देखना वो वोही ठहरा होगा!
अब मैं सूरज को डूबने नहीं दूंगा!!!
मैंने सुना है उसके रथ में तुम हो
तुम्हे में उतार लाना चाहता हू
तुम जो स्वाधीनता की प्रतिमा हो

तुम जो साहस की मूर्ति हो
तुम जो धरती का सुख हो
तुम जो कालातीत प्यार हो
तुम जो मेरी धमनियों का प्रवाह हो
तुम जो मेरी चेतना का विस्तार हो
तुम्हे में उस रथ पर उतार लाना चाहता हू !!!
रथ के घोड़े,आग उगलते रहे
अब पहिये तस से मस नहीं होंगे !
मैंने अपने कंधे चौड़े कर लिए है !
कौन रोकेगा तुम्हे?
मैंने धरती बड़ी कर ली है
अन्न की सुनहरी बालियों से मैं तुम्हे सजाऊंगा
मैंने सीना खोल लिया है
प्यार के गीतों में मैं तुमको गाऊंगा
मैंने दृष्टी बड़ी कर ली है

हर आँखों में तुम्हे सपनो सा लाऊंगा!

सूरज जायेगा भी तो कहा ?

उसे यही रहना होगा
यही
हमारी सांसो में
हमारे रगों में
हमारे संकल्प में
तुम उदास मत होवो
अब मैं किसी भी सूरज को डूबने नहीं दूंगा
!!!!!!!

2 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर कविता

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  2. Nice one dear... keep it up....
    अब मैं किसी भी सूरज को डूबने नहीं दूंगा !!!!!!!

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