Sunday, July 31, 2011

पलक-तूलिका

मन की चौखट लांघ गया
कर जीवन-पथ मे छांह गया
अनदेखे कोमल तंतु से
को उलझी लटें संवार गया

एक ऐसी सरस बयार चली
अंतस को सुना मल्हार चली
तेरे बोलों की बांसुरिया
प्राणों मे सुर संचार चली

तन बजने लगा मंजीरा सा
मन मतवाला हुआ मीरा सा
दिन-रैन नेह की होली ने
जीवन रंग दिया अबीरा सा

मैना मनकी बोले भोली
रग-रग मे करती ठिठोली
पलकों की झुकी तूलिका ने
तन-मन मे रंग दी रंगोली

8 comments:

  1. अहा, मन भा गयी यह चित्रकारी।

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  2. खुबसूरत चित्रण के साथ सुंदर रचना...

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  3. चित्र और रचना दोनों ही बहुत खुबसूरत हैं

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  4. गज़ब की भावमयी रचना।

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  5. क्या लिखें बहुत खूबसूरत भाव हैं।

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  6. Rekha ji,vandana ji,sunita ji aapka dhanyawaad jo aapne rachna par samay diya.......

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