Friday, July 6, 2012

पहचान

वो गाव  की पगडण्डी                                   
वो पछियों का कलरव 
वो चहलकदमी करते घर आँगन में नन्हे -से-मेमने 
खुले आसमान में सितारों के बीच 
तन्हा चाँद आज भी उदास सा है जब से मैंने देखा है उसे  गाव में 
घर के चबूतरे  पर पर खड़े होकर ........
गाव की सोंधी खुशबु का एहसास...... 
पता नहीं,कहा...खो -सा गया?

सब कुछ पीछे छुट -सा गया है....आज 
गाव का एहसास दम तोड़ने लगा है अब,
गाव की पक्की सड़के ...पक्के मकान ,
मोबाइल के गगनचुम्बी टावर 
मोटरसाइकिल के   धुओं से अब ,
गाव की पहचान ही बदल सी गयी है आज......! 

3 comments:

  1. पूरी तरह बदल गया है गाँव..

    ReplyDelete
  2. खुबसूरत अभिवयक्ति....

    ReplyDelete
  3. वक्त के साथ सब कुछ बदल चुका हैं ...और ये ही नियति भी हैं ...

    ReplyDelete