
मन की व्यथा किसे कहू?
यहाँ चाहते है सब ही कहना
और सुनना कोई नहीं!
तो क्या बटेगा दुःख दर्द
फिर क्यूँ कहू,किसे कहू
अपने मन की व्यथा !!
सुना है कहने से ख़ुशी दुगनी
और दुःख होता है आधा
समय के साथ लोगो ने भी ली है करवट
अब देखा है दुःख को दुगना
और ख़ुशी को आधा करते
फिर क्यूँ कहू,किससे कहू...
अपने मन की व्यथा !!!!
ना कहने में घुटन है
और कहने में समस्या
ऐसे में क्या करू,किस से कहू
अपने मन की व्यथा !!!!
एक ही प्रभु है जो सुनता है सभी की
और कहता कुछ भी नहीं जानता है
सुनना किसी को नहीं हे प्रभु,
तुम से ही कहूँगा अपने हिर्दय की व्यथा!!!!
और तुम्हारी सुनना भी चाहूँगा!!!!!!