Thursday, May 6, 2010

मिलते है अजनबी से !!!!!!!


अच्छे दिनों में हम से मिलते थे जो ख़ुशी से
गर्दिश के दिनों में मिलते है अजनबी से
इस आइना-ऐ-दिल को रख कर करीब अपने
झाका तो डर गया मैं अपनी ही तीरगी से
फूलो से जो उबा कलियों को नोच डाला
पूछो कभी किसी भी कुचली हुयी कली से
उड़ते कभी ये कितने जो झुण्ड पछियों के
डर कर हुए है गायब वो अब के आदमी से
गर्दिश के दिन गए अब आये है अच्छे दिन तो
देखा खड़े है फिर से कुछ लोग मतलबी से
इजहारे इश्क ज्यूँ ही मैंने किया उससे
मुद कर मुझे न देखा उसने उस घडी से

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