Saturday, May 8, 2010

एजिअत(himmat)


बातों बातों में बिचरने का इशारा कर के
खुद भी रोया वो बहुत हम से किनारा कर के
सोचता हु तन्हाई में अंजामे खलुश
फिर उसी जुर्म--मोहोब्बत को दोबारा कर के
जगमगा दी तारे सहर के गलियों में मैंने
अपने अश्कको को पलकों पर सितारा कर के
देख लेते है चलो हौसला दिल का
और कुछ तेरे साथ गुजारा कर के
एक ही सहर में रहना मगर मिलना नहीं
देखते है ये एजिअत भी गवारा कर के...

2 comments: