Thursday, June 3, 2010

स्पेशल चाय या आंसू

मन में एक चाहत हुयी
औरो की भाति कभी
बाहर जाकर खड़े -खड़े
चाय पीने का लुफ्त उठाऊ
सो निकल पड़ा-
सड़क के किनारे
एक नामी चाय की गुमटी
लोगो की जमात
हाथों में संभाले
चाय,पान,बिस्कुट
खड़े बैठे
चुस्की,चबाते,खाते लोग
बगल में चाय के उबलते
खोलते रंग बदलते पानी
इधर हाथ में फद्फरते
अखबार के पन्ने
उधर तूफान की तरह गुजरते सड़क पर
मोटर करे...
जल्दी जल्दी भागते नौकरिपेसा लोग
साईकल के पैदल मारते कुछ तेज मारते
लड़के लड़कियां
स्कूल पहुचने की हड़बड़ी !
तैयार चाय सर्व करते करते
इधर एक दुबले पतले लड़के के
हाथों से फिसलता ग्लास
फ़र्स पर बिखरा
गुमटी मालिक का जोरदार थपड...
तिलमिलाया बेचारा......
एक गूंगी चीख...
संधे गले के भीतर
गुदमुड़ाने लगा
खुलकर आंसू भी
बाहर आ ना सके....
वैसे शायद यहाँ
शख्त हिदायत होगी
खुलकर रोने से
ग्राहक टिक नहीं पाएंगे
सिसकते हुए भी हँसना मगर
लोगो को स्पेशल चाय पिलायेंगे
अनुशासित अस्भ्सयत बेचारा!
सिसकियों के सहारे
अब खुद आंसू पीने लगा
ग्राहकों को चाय थमाते आगे बढ़ने लगा!!!!

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