Wednesday, June 2, 2010

कपटी नकाब हटती !!

खुद में खुदा जो होता तो हम खुशनसीब होते !
भ्रम से भ्रमण ना होता तो हम सभी ना रोते !!
सब खुशनसीब होते ,तनहा सभी की कट जाती

मिट जाती दूरियां सब आपस में सबकी पटती

नहीं भेदभाव रहता नहीं कुछ अभाव रहता

जबकि मनुसयता से कपटी नकाब हटती

सुख स्वर्ग का सभी को मिलता वसुंधरा पर !
दर्पण में रहती चितवन चलती ना अप्सरा पर

घटता ना कुछ किसी का नहीं देह कोई कटती !
जब की मनुष्यता से कपटी नकाब हटती !!
हस लेती सत्यता जब किस्मत कभी ना रोती

बंदा से हो इबादत खुशिया खुदा को होती

वाव्हिचार जब ना होता,अपहरण मरण घट जाती !
जबकि मनुसयता से कपटी नकाब हटती

बंदा से बदनसीबी कही दूर जा कर कटती !
खुशिया करीब आकर आपही सिमटती !!
खुद में खुदा जो होता हर रैन चैन से कटती!
जबकि मनुसयता से कपटी नकाब हटती !!

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