भावनाए
जो मृत हो चुकी है!
वो चेहरे
जो बदल गए है
वो ईमारत
जो मात्र एक ईट पर टिकी है
मुझे भरम है की
क्या कभी पोछ सकेंगे
ये चाँद के आंसू
अब जरुरत है
नयी चेतना,नयी प्रेरणा,नयी जाग्रति की
जो समाज की झूटी परम्परा से
टकरा सके
और
नए विचार ,नया समाज
उत्पन कर सके
और पोछ सके
ये चाँद के आंसू!!!!!!!!
बहुत अच्छी अभिव्यक्ति ..एक बहुत सुन्दर कविता के लिए बधाई
ReplyDeletebas ab yahi zarurat hai...samaj ki bemani parampraaon se jeetne kee
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