Monday, June 7, 2010

कैसी रस्म बिदाई .........

कैसी रस्म बिदाई .........


थे खुशियों से सराबोर स्वजन ,
बिटिया की सज रही थी डोली ,
तब उमड़ा दुलार बाबुल का ,
और पनियाई सी आँखें बोलीं -

प्यार से मैंने बोया तुझको ,
अपनी इस फुलवारी में,
जा रही अब बिटिया तू ,
भरकर सूनापन क्यारी में,

लगता है मझको अब भी जैसे ,
तू है वही नन्ही सी कली,
पर सच है ये , के बनकर फूल,
अब तू मुझको छोड़ चली ,

बनेगी मेरा संबल बिटिया ,
मीठी-मीठी यादें तेरीं ,
जा तू नया संसार बसा ,
ले कर ये दुआएं मेरी,

दुःख के काँटों से दूर कहीं ,
बिटिया तेरी इक बगिया हो,
सुख के भोंरे हों संगी तेरे ,
तितलियाँ ख़ुशी की ,सखियाँ हों,

इस जीवन-उपवन का बिटिया,
तू है सबसे प्यारा फूल,
प्यार से जिसने तुझको सींचा ,
उस माली को ना जाना भूल |

ऐसा कहकर जब बाबुल की,
आँखों में पानी भर आया ,
गले लगा बूढ़े बाबा को,
बिटिया ने यूँ समझाया -

बाबा फूलों को सहेज सदा ,
माली भी कहाँ रख पता है ,
भाग यही है फूलों का,
पराया चुरा ले जाता है,

मेरा भी है भाग यही,
पराये संग मैं जाउँगी ,
पर अपनेपन की खुशबू से ,
अपना सबको बनाऊंगी |

तुम्हारी ही सौगात है बाबा ,
मेरे जीवन का हर पलछिन ,
तुम्ही कहो क्या भूला सकुंगी ,
बाबा तुमको एक भी दिन,

तुम्हारे दुलार की छाया में ,
जाने कितने मौसम बीते,
आने वाले मौसम तुम बिन,
लगेंगे बाबुल रीते-रीते |

पर , फूल मुझे कहते हो बाबा ,
तो फिर मुझको जाने दो,
खुशियाँ जग में बिखराऊँ मैं ,
ये रीत फूल की निभाने दो ,


पहले जब भी नन्ही बेटी ,
रूठकर आंसू बहाती थी,
बाबा के समझाने पर तब,
झट से चुप हो जाती थी,
हुआ उलट अब बूढ़े बाबा ,
बच्चे से रोते जाते हैं,
आज बिटिया के शब्द जैसे ,
बाबुल को समझाते हैं |
ह्रदय था पुलकित ,आँखें नाम थीं,
बिटिया जब हुई बिदाई ,
जाता देख अपनी लाडो को ,
बरबस फूटी माँ की रुलाई ,
अपनी नन्ही के ब्याह का ,
जो माँ सपना संजोती थी,
आज उसके सच होने पर ,
सिसक -सिसक कर रोती थी ,
कल तक जो गोदी में खेली,
पलभर में है हुई पराई ,
बिटिया से बिछोह की ऐसी ,
जग ने क्यूँ है रीत चलाई ?

1 comment: