क्यूँ है हमसे ये बेरुखी.....
क्यूँ है हमसे ये बेरुखी.....
जब भी बात करना चाहा
निगाहे उठी उनकी रुखी रुखी
कभी दिल हमारा भी होता है
हाले दिल सुनाने को !!!
कभी हाले दिल सुनने को!!!
जब भी चाही उनसे गुफ्गु करनी
कभी इधर तो कभी उधर
मसरूफ होने की बात कही!
क्या हम जिन्दगी के उस मक़ाम पे पहुंचे है?
जहा हम पसंदगी का सवाल है!
अगर उनकी निगाह में यही सच है
तो जीना हमारा बेकार है!!!
बहुत सुन्दर और सराहनीय ...यहाँ भी आये है प्रेम पर ही लिखा है
ReplyDeletehttp://athaah.blogspot.com/
Dhanyawaad jo aapne pasand kiya.....
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