कभी रिश्ता कहीं छूटे, कभी वादा कोई टूटे
कभी मैं रूठ जाऊँ या कभी मुझसे कोई रूठे
कभी तकरार की खातिर,
कभी या प्यार की खातिर
वही आँसू भरा नगमा मैं फिर से गुनगुनाता हूँ
वो फिर से जीत जाता है, मैं फिर से हार जाता हूँ
तुम्हारी आँख का आँसू मेरी पलको पे छा जाये
तुम्हारा दर्द सीने का, मेरी किस्मत में आ जाये
तेरे जीवन का हर नश्तर
तुम्हारी राह का पत्थर
मेरे फटते हुए दामन में मैं भरता ही जाता हूँ
वो फिर से जीत जाता है, मैं फिर से हार जाता हूँ
दिल की जो है ख्वाहिश कभी पूरी ना कर पाऊँ
कभी किस्मत नचाये और मैं नचता चला जाऊँ
कभी जीवन बने उलझन
कभी जीना बने बंधन
जिसे दिल में दबाये होठों से मैं मुस्कुराता हूँ
वो फिर से जीत जाता है, मैं फिर से हार जाता हूँ
कभी वो पास होता है तो फिर अहसास होता है
कि चाहे कुछ भी हो जाये मनुज तो दास होता है
मेरा अधिकार झूठा है
और ये संसार झूठा है
कोई सच मिल ही जायेगा, यही सपना सजाता हूँ
वो फिर से जीत जाता है, मैं फिर से हार जाता हूँ
bahut achha likha hai
ReplyDeleteवाह ....बेहतरीन शब्द रचना ।
ReplyDeletesunder bhav sanjoe ek acchee rachana.
ReplyDeleteaapke liye likha gaya tha aur aaplogo ne pasand kiya isliye aapka dhanyawaad........
ReplyDeletesidharth ji bahut achi rachana man ko chooti hui 'vahi aansoo bhara nagma mai fir se gungunata hoo'jab jeewan me dard itna ghulmil jaye to use to gungunana hi parta hai. koi sach mil hi jaye ga ,yahi sapna sajata hoo..sidhath bhai badhai.aap se aur acha sunne ki aas me.
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