दिल को भी हम राह पर लाते रहे है !
खुद को भी कुछ-कुछ समझाते रहे है!!
चादर अपनी बढे -घटे ये फ़िक्र नहीं !
पाँव यूँ ही हम फैलाते रहते है !!
चुगने देते है चिड़ियों को खेत अपने !
फिर यूँ ही बैठे पछताते रहते है !!
तपिश बदन की बढती है जब फुरकत(विरह) में !
नल के नीचे बैठ कर नहाते रहते है !!
रात भिगोते है दामन को अश्को से !
सुबह धुप में उसे सुखाते रहते है ! !
कही किसी की नजर ना हमको लग जाये !
अपनी मौत की खबर उड़ाते रहते है !!
nivedan hai yellow colour padne me vadha ban raha hai....
ReplyDeletekuch keejiye...
aabhar
safed background men peele se likha hua pakdne men kuchh dikkat hui.koi aik colour badalne par vichaar kijiyega.
ReplyDeleteनव-संवत्सर और विश्व-कप दोनो की हार्दिक बधाई .