Thursday, April 28, 2011

बूढ़े बरगदो

पतझर आता जाता है


फिर,नए मौसम होते है


नयी कलियाँ खिलती है


मगर बूढ़े बरगदो के वो ही


जस्बात होते है


जीवन की तपती धुप में


कोई मौसम हो


राही के साथी बन कर


शीतल छाव देते है


बूढ़े बरगदो के साए


सौगाते होते है


पैदा हुए और पाले


पेड़ के नीचे


वे ही नाग बनकर


जड़े खोखली करते है


फिर भी,बूढ़े बरगदो के


हौसले कम नहीं होते !


जहा लोगो के दिल में


अविश्वास के पौधे


पनपते रहते है


दोस्त हो या अपने


अब लोग,


गले नहीं मिलते


वह मधुर रिश्ते


नहीं होते है


इसलिए इस दौर में


कही बूढ़े बरगद के


साये नहीं होते !


अब हर जगह


बूढ़े बरगद नहीं मिलते


जहा होते है


राही का साथी बन कर


शीतल छाव देते है


बुद्धे बरगदो के


साये सौगात होते है !!!!



2 comments:

  1. बहुत सार्थक रचना..आज बूढ़े बरगदों का वह सम्मान कहाँ रहा है, लेकिन वे फिर भी अपनी छाया सब पर बनाए रखते हैं.

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  2. बहुत खूबसूरत रचना। बरगद के छाए की तरह। शीतलता प्रदान करती हुई।

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