Tuesday, April 26, 2011

मुट्ठीभर धूप

लोग भटक रहे है ,आज
मुट्ठीभर धूप की तलाश में
वो धूप,जो कभी
झाका करती थी
खिड़की के झरोखों से
दरवाजे की झिरियों के पेड़ो के झुरमुट से,
बदलते मौसम के परिवेश ने
सीखा दिया है,धूप को भी
आवरण में लिपट कर रहना
डरती है धूप भी
कोई छीन ना ले
उसकी आजादी
और छोड़ दे उसे यूँ ही
अनाथ धूप में
भटकने के लिए
इसलिए धूप ने आजकल
झरोखो से झाकना छोड़ दिया है !!!!

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