मेरी इल्तिजा
बला से वो दुश्मन हुआ करता है !
वो काफ़िर सनम हुआ करता है !!
किसी की तपिश (जलन) में ख़ुशी है !
किसी की खलिश (तकलीफ) में मजा है किसी का !!
जरा दाल दो अपनी जुल्फों का साया !
मुकद्दर बड़ा नरसा (ख़राब) है किसी का !!
मेरी बज्म में आकर पूछते है !
बुरा हाल है हमने सुना है किसी का !!
मेरी इल्तिजा पर बिगड़कर वो बोले !
नहीं मानते इसमें क्या है किसी का!!
बहाजिर(देखने में )ना जाने,ना जाने ,ना जाने!
तुझे "सिद्धार्थ"दिल जानता है किसी का !!!
badhiyaa
ReplyDeleteएहसास की यह अभिव्यक्ति बहुत खूब
ReplyDeleteकई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
ReplyDeleteacchee abhivykti...
ReplyDeleteise fir se post karne ka karan?
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