Saturday, April 23, 2011

मेरी इल्तिजा


बला से वो दुश्मन हुआ करता है !
वो काफ़िर सनम हुआ करता है !!

किसी की तपिश (जलन) में ख़ुशी है !
किसी की खलिश (तकलीफ) में मजा है किसी का !!

जरा दाल दो अपनी जुल्फों का साया !
मुकद्दर बड़ा नरसा (ख़राब) है किसी का !!


मेरी बज्म में आकर पूछते है !


बुरा हाल है हमने सुना है किसी का !!


मेरी इल्तिजा पर बिगड़कर वो बोले !

नहीं मानते इसमें क्या है किसी का!!


बहाजिर(देखने में )ना जाने,ना जाने ,ना जाने!


तुझे "सिद्धार्थ"दिल जानता है किसी का !!!

5 comments:

  1. एहसास की यह अभिव्यक्ति बहुत खूब

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  2. कई दिनों व्यस्त होने के कारण  ब्लॉग पर नहीं आ सका

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