रह रह कर यही प्रश्न
मेरे मन में उठता है
कौन हूँ में?
क्या अस्तित्व है मेरा?
कोई मुझे पहचानता नहीं
क्या हम सभी में समानता नहीं?
सब मौन क्यूँ हैं?
कौन हूँ मैं?
क्या में हवा हूँ?
तो में स्थिर क्यूँ हूँ?
या 'पत्थर' से टकराकर
बेबस हुआ हूँ
में दिखता नहीं हूँ
या अन्देखा किया है
जो तू देखा किया तो
में हवा भी नहीं हूँ
कौन हूँ मैं?
क्या मैं जल हूँ?
आज था, या कल हूँ
वेग प्रबल है
मन विह्वल है
क्या बर्फ से पिघला
ये खारा आँखों का पानी
जहां से है गुज़रा
सब बंज़र हुए
क्यों तुम्हे चोट पहुँची
क्या खंजर हुए?
पानी तेरी आँखों में
मेरी आँखों में
मैं जल भी नहीं हूँ
कौन हूँ मैं?
क्या मैं आग हूँ?
या अपनी ही राख हूँ
क्या तुझको ये आग जलाती है?
या मैं खुद ही इसमें जलता हूँ
सूरज को तरह तपता हूँ
मेरी आग में रौशनी क्यूँ नहीं
क्यूँ तेरे लिए मैं शबनम हुआ
मेरी आग भी मेरी आँखों का पानी
सुखाती नहीं
मैं आग भी नहीं हूँ
कौन हूँ मैं?
क्या मैं मिटटी हूँ?
बंजर या रेतीली
उगी हैं खर पतवार
या फिर झाडें कटीली
बिखरी है कण कण में
ये रेत है या मिटटी
तपती हुई रेत पर
सुलगती है मेरी ज़मीं
कहीं पानी ज्यादा है
और सूखा है कहीं
रेत में उगता है
तिनका महीन
मेरी जिंदगी में तिनका भी नहीं
मिटटी और रेत
कभी एक
नहीं होते
नहीं मैं मिटटी नहीं हूँ
कौन हूँ मैं?
क्या मैं आकाश हूँ?
उचाईयों में अकेला
या नियति का खेला
क्यों उचक कर तुने
ना चाहा छूना मुझे
क्यों तुझमे मुझमे है
अब ये दूरी
मैं कहाँ हूँ तेरे बिन
तू मेरे बिन अधूरी
गर आकाश होता
तो आजाद होता
यादों में तेरी
मैं तो बंधा हूँ
नहीं मैं आकाश नहीं हूँ
कौन हूँ मैं?
न मैं हवा हूँ ना आकाश
ना मिटटी आग पानी
कोई तो बतलाये
क्या है मेरी कहानी
पांच तत्वों से बनता है जीवन
इनसे विरक्त मेरा ये मन
न जीवित न मृत
मैं हूँ जड़ चेतन !!
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