रात जब तुझको देखा तो शर्मसार हुआ चाँद
तारों की तरह टूट के दो चार हुआ चाँद..
आँखें भी जलीं, दिल भी जला, मैं पिघल गया
ख्वाबों की झुलस नें कहा अंगार हुआ चाँद..
राहों में तुम्ही तुम थे, बदलता रहा सफर
थक हार गये, डूबे, मझधार हुआ चाँद..
वादे भी नहीं याद, इरादों में धुंध सी
मतलब के यार मेरे, सरकार हुआ चाँद..
मैं मुझसे मिल के रूठा “सिद्धार्थ” तुम न आये
तुम हो तुम्हें मुबारक, दीवार हुआ चाँद..
बहुत खूबसूरत गज़ल ..
ReplyDeleteग़ज़ल के एक-एक शे’र पर वाह-वाह निकलता गया। बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
ReplyDeleteअलाउद्दीन के शासनकाल में सस्ता भारत-2, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteआभार, आंच पर विशेष प्रस्तुति, आचार्य परशुराम राय, द्वारा “मनोज” पर, पधारिए!
अलाउद्दीन के शासनकाल में सस्ता भारत-2, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें