जामुन का जो पौधा
लगाया था पिता ने
अब वो मुकामल पेड़ बन गया है
घना,छायादार,फलदार
बिलकुल पिता की तरह
जेठ का फनफनाता सूरज
जब फटकारता है कोड़े
जामुन का पेड़ की नंगी पीठ पर
तब खमोशी से सहता है ये कठोर यातना
ताकि उपलब्ध हो सके हमें
चाव का एक अदद टुकड़ा पिता भी जामुन की पेड़ की तरह है
जब भी घिरे हम
उलझन के चक्र में
या डूबने वाले थे दुखो के बाढ़ में
पिता ढाल बन कर खड़े हो गए
हमारे और संकट के बीच
जामुन का ये छोटा सा पेड़
हमारी छोटी बड़ी कामयाबी पर
ख़ुशी से झूमता है ऐसे
की थर्थारने लगती है खिड़कियाँ घरो की
लेकिन ऐसे अवसर पर
दिखाई देती है पिता के चेहरे पर
गर्व की पतली सी लकीर बस........
हमारी खातिर
अपना सब कुछ नौचावार करने को
आतुर रहता है ये जामुन का पेड़......
जैसे पिता हो हमारा.....
पहेली बनी हुयी है
हमारे लिए ये बात
की पिता जामुन के पेड़ की तरह है
या जामुन का पेड़ पिता की तरह!!!!
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति ....
ReplyDeleteगजब ! बहुत अच्छी कविता ।
ReplyDeleteबहहुत खूब .... ये जामुन का पेड़ हो या फिर पीपल का ... सदा रास्ता दिखाते हैं ....
ReplyDeleteबहुतसंवेदनशील रचना है ...
bahoot hi sunder kavita............
ReplyDeleteupendra ( www.srijanshikhar.blogspot.com )