Wednesday, April 27, 2011

लघुकथा :-स्वाभिमान

उसके कापते हाथ बड़ी देर से भोजन की थाली
में यूँ ही कुछ टटोल रहे थे !
आज तरकारी कुछ जयादा ही स्वादिस्ट बनी थी,
लेकिन थाली में रोटी ख़तम हो गयी थी!
यह सब देख कर पास खड़े पोते ने तपाक से कहा -"आपको कुछ चाहिए?
उसे निहारते हुए,
उन्होंने जवाब दिया -'रहने दे,तुझसे नहीं होगा!'
'मम्मी,मम्मी !'पोता चिलाया !
बहु का नाम सुनते ही
अंगूठे और अंगुली के बीच का चटकारा जबान के बीच ही रह गया !
आँखों और गले के बीच आंसुओं की बुँदे फस गयी!
शर्म से वो बोली "-नहीं बेटा!

पेट कुछ जयादा भर गया है !'

5 comments:

  1. बहुत मार्मिक प्रस्तुति..दिल को छू जाती है.

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  2. aare gazabb..........pr aisa kaise ho sakta hai...aur kyun hota hai....kya ek aurat kisi ko...kisi ko bh khane ke liye yun is tarah sata sakti hai.....really aapki rachna ko padhkar meri aankhon main ansu aa gaye......

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  3. बहुत खूब सिद्ध ...गजब लिखा है ..मार्मिक अक्सर ऐसा होता है गुंजन जी ...शयद आपने न देखा हो .बाहर नजर डालें तो दुनिया मे बहुत कुछ होता है ..ये घटना उन्ही मे से है जोकि सिद्धार्थ जी ने रचना मे ढाल दी ..बुदी अंखियों का डर ..सुंदर खाका खिंचा ....

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