1.
कुछ दिन तो बसो मेरी आँखों में
फिर ख्वाब अगर हो जाओ तो क्या
कोई रंग तो दो मेरे चेहरे को
फिर ज़ख्म अगर महकाओ तो क्या
जब हम ही न महके फिर साहब
तुम बाद-ए-सबा कहलाओ तो क्या
एक आईना था, सो टूट गया
अब खुद से अगर शरमाओ तो क्या
दुनिया भी वही और तुम भी वही
फिर तुमसे आस लगाओ तो क्या
मैं तनहा था, मैं तनहा हूँ
तुम आओ तो क्या, न आओ तो क्या
जब देखने वाला कोई नहीं
बुझ जाओ तो क्या, गहनाओ तो क्या
एक वहम है ये दुनिया इसमें
कुछ खो'ओ तो क्या और पा'ओ तो क्या
है यूं भी ज़ियाँ और यूं भी ज़ियाँ
जी जाओ तो क्या मर जाओ तो क्या
------- उबैदुल्लाह अलीम-----
2.
तेरे इश्क़ की इन्तेहा चाहता हूँ
मेरी सादगी देख, क्या चाहता हूँ
सितम हो कि हो वादा-ए-बे-हिजाबी
कोई बात सब्र-आजमा चाहता हूँ
यह जन्नत मुबारक रहे जाहिदों को
कि मैं आपका सामना चाहता हूँ
सारा सा तो दिल हूँ मगर शोख इतना
वही लनतरानी सुना चाहता हूँ
कोई दम का मेहमान हूँ, ए अहल-ए-महफिल
चिराग-ए-सहर हूँ, बुझा चाहता हूँ
भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी
बड़ा बे-अदब हूँ, सज़ा चाहता हूँ
(अल्लामा इकबाल)
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteया देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
bahut bahut sunder prastuti.
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