धीर चुकता जा रहा है
आस टूटी फिर बंधी है
समय हँसता जा रहा है
आँख फिर भी पथ निहारे
मन ना माने.........
सुरमुई से खवाब सारे रात में
गहरे उतर कर उस गली को ढूंढते है...
जिसमें रहते है सितारे
मन ना माने
कुछ पलो की याद है
कुछ गंध सांसो की बची है
कुछ उसी में डूबता सा सोचता
जीवन गुजरे अधखुले से होठ
ये कर रहे बातें अधूरी
बंद आँख देखती है फिर पलट कर
वो नज़ारे
मन ना माने!!!!!!!!
बढ़िया है..
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