Thursday, October 7, 2010

मेरी जान तुम्ही हो

मेरा दिल मेरी मुहब्बत मेरी जान तुम्ही हो
आन -बान ,शान और मेरा ईमान तुम्ही हो


चल कर मंजिले सफ़र में बेमुकाम ठहर गये
जिसका था इन्तजार वो मेहमान तुम्ही हो


मंदिर पे सजदा मस्जिद को दी सलामी
पूजा है जिसे दिल से वो दिले नादान तुम्ही हो


जब सबने ठुकराया तब तुमने दिया सहारा
भूलूंगा नही उम्र भर वो एहसान तुम्ही हो


मील के पत्थरों ने तो खूब भटकाया हमे
अब् तो आखरी मंजिले निशान तुम्ही हो


लोग अक्सर पूंछते हें मेरा मुझसे ठिकाना
अरे मेरा पता और मेरी तो पहचान तुम्ही हो

4 comments:

  1. मन को प्रभावित करने वाली ग़ज़ल...बधाई।

    ReplyDelete
  2. बहुत अच्छी प्रस्तुति। नवरात्रा की हार्दिक शुभकामनाएं!

    ReplyDelete