कल वह वेश्या बन बरबाद हुयी |
उसे भूख थी धन की ,
उन्हें प्यास थी तन की,
किसी के रात्रि का श्रृंगार बनी,
या फ़िर विवशता का शिकार बनी ,
जब उसका जीवन डूबा अंधियारे मे,
तो उनकी रातें चार चाँद हुयी ,
कल वह वेश्या बन बरबाद हुयी |
अन्तिम निर्णय ले डाला,
जीवन सारा खो डाला ,
उसके अस्तित्व का हनन हुया,
देख उसे कोई मगन हुया ,
हर दर कितनी आस लगाई ,
पर सफल ना फरियाद हुयी ,
कल वह वेश्या बन बरबाद हुयी |
दुनिया मुर्दों की भीड़ लगती है,
अब अपने पर चीढ़ लगती है,
यह तो एक छिपा बाज़ार है,
रोज बिकते उस जैसे हज़ार है,
बनी वेश्या चेतना हमारी पहले,
वह तो इन सबके बाद हुयी,
कल वह वेश्या बन बरबाद हुयी |
bade hii bhavukta se chitrit kiyaa hai...shabda vyanjana ati sundar
ReplyDeleteThanks ana
ReplyDeletemindbowing bhai.......now i became your fan.
ReplyDelete