Tuesday, July 6, 2010

ना चोट अपनी ना दर्द अपना

ना जमीं अपनी ना आसमान अपना
हम फ्लैटों में रहते हैं

रिश्तों के वर्क से मिट गयी हर इबारत
ना माँ अपनी ना बाप अपना
हम फ्लैटों में रहते हैं

जिंदगी की दौड़ में खो गयी है कहीं
ना हँसी अपनी ना अरमां अपना
हम फ्लैटों में रहते हैं

इन्टरनेट पर करते हैं सारी दुनिया से चेटिंग
ना सखी अपनी ना सखा अपना
हम फ्लैटों में रहते हैं

बाजू वाले का नाम 217 न. वाले शर्मा जी
ना गली अपनी ना गाँव अपना
हम फ्लैटों में रहते हैं

रहते हैं घरों में चिड़ियाघरों से
ना शाम अपनी ना सहर अपना
हम फ्लैटों में रहते हैं

जीने की कशमकश में मर गए एहसास
ना चोट अपनी ना दर्द अपना
हम फ्लैटों में रहते हैं

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