Saturday, April 10, 2010

फिर किसी दिन..

फिर किसी दिन
मेरी, ये कविता पूरी होगी
मिलने पर कुछ छंदों के
नहीं अधूरी होगी
हाँ! पर फिर किसी दिन......

फिर किसी दिन
इसमें, अपनों की ही बाते होंगी
जाने कितनी मुद्दत के बाद
शब्दों की बरसाते होंगी
हाँ! पर फिर किसी दिन....

फिर किसी दिन
देखो, कोरा कागज़ त्यौहार मनायेगा
होली के रंग की बात नहीं
श्याम रंग तो पायेगा
हाँ! पर फिर किसी दिन....

फिर किसी दिन
चौखट पर, हलकी सी धुप बिखरेगी
बन के गीत मेरी ये कविता
फिर होंठों पर निखरेगी
हाँ! पर फिर किसी दिन....

फिर किसी दिन
तुम भी, यूँ ही गुन्गुनायोगे
लेकिन गीत मेरा ही मुझे सुनने को
शायद तरस जायोगे
हाँ! पर फिर किसी दिन..

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