न जाने किसे धुन्धती है मेरी नजर
खामोश है लब मगर बोलती है नजर
वफ़ा की उम्मीद किस से रखु
पल भर में तो बदल जाती है नजर
अपने पराये लगते है कभी
और कभी पराये अपने
नहीं जानता किसे खोजती है मेरी नजर
इस धरा के रंगहीन रिश्तो से बेखबर
केवल सून्य को निहारती है मेरी नजर......
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