Tuesday, April 6, 2010

मेरे अपने

मेरा जीवन सुना उपवन
लुट चूका खुशियों का चमन
दगा दिया मुझको अपनों ने
मिट गया सबसे अपनापन
भरे जहा में हुआ अकेला
शांत सौम्य रह गमो को झेला
मोम सा नाजुक दिल मेरा
मजबूरी बस आग से खेला
जिन्दगी गम का सागर बन गयी
हम अक्सर डूबते इतराते रहे
किस्ती जब भी फस गयी भवर में
किनारे खड़े मेरे अपने मुस्कुराते रहे

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