Wednesday, April 7, 2010

फिर एक तमन्ना जी लें हम !

आओ
फिर एक तमन्ना जी लें हम !

कुछ ख्वाब सजा लें खुशियों के
कुछ तकदीरें सीधी कर दें
धरती से फलक तक जा पहुंचे
उम्मीद की एक सीढ़ी कर दें ...

मुस्कान बाँट दें होठों को
सारे अश्कों को पी लें हम

आओ !
फिर एक तमन्ना जी लें हम !

फिर आज सहारा दें
टूटी आशाओं को
विचलित कर दें
इस जग की परिभाषाओं को
दें छाँव झुलसते
बोझ उठाते बचपन को
फिर फुलवारी कर दें
इस मन के आँगन को

प्रेम-वृष्टि में भीगें,हो लें गीले हम
आओ
फिर एक तमन्ना जी लें हम !

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