बचपन के दिन कितने अच्छे थे
तब दिल नहीं खिल्लोने टुटा करते थे
वो खुशियाँ जाने कैसी खुशियाँ थी
तितली पकड़ कर उछला करते थे
छोटे थे तो फरेब भी छोटे थे
दाना दल कर चिड़िया पकड़ा करते थे
अपने जल जाने का एहसास भी नहीं था
जलते शोलो की तरफ लपका करते थे
अब एक आंसू भी गिरा तो रुसवा कर देता है
बचपन में तो खुल कर रोया करते थे..........
अंतिम पंक्तियां जान डाल गई .........
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