Tuesday, April 6, 2010

कैसी आज़ादी.........

बचा जीने के लिए अगर और कोई रास्ता न हो
खाया जायेगा छीनकर,अगर आनाज सस्ता न हो!!!!
उन रिश्तों का बोझ ढोया जायेगा आखिर कहा तक
जहा हाथो का पैर से दिल का लहू से वास्ता न हो!!!!
कैसी आज़ादी की बात कर रहे है दीवाने यहाँ
कौन सा मुल्क है जहा फतवों की दास्ता न हो!
दाना पानी भी तब तक भगवान् का दिया हुआ नहीं है
जब तक गल्ले के दीवानजी के हाथों में खाली बस्ता न हो....
इन नेताओ से कोई काम तब तक हो पाता नहीं
जब तक रिश्वत की बेड टी और घोटालो का नास्ता न हो.....
गुरु इन्हें सिखा रहे हो तुम उसूलो के संग रहना
आग में भूनते है जिसे यह जब तलक खस्ता न हो.......

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