मेरे से वजूद मेरा है कह दे गरूर मेरा है
काश!कहने की आदत ही छोड़ दी मैंने
जो हो रहा है सब नसीब मेरा है
मैंने छोड़ी थी कभी राह उस पर नहीं गया
भले ही उसपर खड़ी आज नई बस्ती थी
बुतपरस्ती मेरी फितरत थी न उसे छोड़ सका
कोई खाफिर कहे इसको भी मैं न झेल सका
अब कुछ बचा नहीं खुद पर सितम
ढाने को फिर हुयी रात और तेरे याद में दिल डूब गया.........
Dhanyawaad bhai......
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