Tuesday, April 6, 2010

यूँ ही

मैं सोचता हु सरे शाम से सहर यूँ ही
जिन्दगी कट तो रही है मगर यूँ ही
हजारो करवटे बदली इसी तमन्ना में
मेरे लिए कोई रोये रात भर मगर यूँ ही
वक़्त के थाप पर गिरती है हर लहर यूँ ही
मेरी तन्हाई मुझको अजीज है फिर भी
आज तन्हाई से लग रहा है दर बस यूँ ही
मंजिल खूब मिली मंजिल के बाद हमें
फिर भी ठहरी है कहा कोई रहगुजर यूँ ही
हम मर गए है जिसकी हवास ओ-हिज्जत में
काश उनको कभी हो जाये ये खबर यूँ ही..........

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