न गुलसन उजरता न ये आँखें रोती
ये चाहत हमारी कभी कम न होती
कभी न रोता गुलिस्तान का माली
अगर हम में बनता न कोई मवाली
बाद में हम जो हिन्दू मुसलमान होते
कही काश!पहले हम इंसान होते!!!!
न बहती कभी देश में खून की नदियाँ
तराने मोहोबत के के गाती ये सदिया
मजहब और फिरके की कर कर के बातें
लड़ाती है अक्सर सियासी जमाते
हमें चाहिए इनकी चालो को समझे
हुकूमत के भूखे दलालों को समझे
तभी फिर से कायम अमन हो सकेगा
खिलता हुआ ये चमन,चमन हो सकेगा!!!!!
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