तु कल्पना है या हक़ीकत, मै तो बस बहे जा रहा हूँ.
ना सुध है ख़ुद की ना हीं जमीं की, मै बिन पंख उड़े जा रहा हूँ.
बांध ले अपनी डोरी से बना ले मुझे पतंग.
इस बेढंगी जिंदगी को देदे नए ढंग.
तु नहीं तो कोई और नहीं, तेरी डोर नहीं तो कोई डोर नहीं.
उड़ता हीं रहूँगा इसी तरह.
तु कल्पना है या हक़ीकत, मै तो बस बहे जा रहा हूँ.
ना सुध है ख़ुद की ना हीं जमीं की, मै बिन पंख उड़े जा रहा हूँ.
बचपन से मै तुमसे बातें करता आ रहा हूँ.
अंधियारे में तेरा साया तकता आ रहा हूँ.
इस उदास मन को तु देदे नए उमंग.
ठहरे हुए पानी में लहरा दे तरंग.
तु नहीं तो कोई और नहीं, ख़ुद से आना कोई ज़ोर नहीं.
राहें देखता हीं रहूँगा इसी तरह.
तु कल्पना है या हक़ीकत, मै तो बस बहे जा रहा हूँ.
ना सुध है ख़ुद की ना हीं जमीं की, मै बिन पंख उड़े जा रहा हूँ.
No comments:
Post a Comment