Wednesday, April 28, 2010

एहसासे मोहोबत


वक़्त सुकरात मुझको बनाता रहा
मेरा फन मुझ को अमृत पिलाता रहा
उसकी पलकों से अरिज पे जो गिरा
एक सितारा बहुत झिलमिलाता रहा
साडी सचाई चुप रही और वो
सब को झूटी कहानी सुनाता रहा
ये सियासत बनी एक तवायफ का घर
कोई आता रहा कोई जाता रहा
उनकी यादो के जख्म अब तक हरे
वक़्त मरहम पर मरहम लगाता रहा
सूखे पते की मानिंद थी खावाहिसे
वक़्त झुला सा उनको झुलाता रहा
तितलियों पर तो पाबन्दी लग गयी
वक़्त फूलो से खुशबू चुराता रहा
धीरे धीरे नयी एक गजल बन गयी
कौन एहसासे मोहोबत जगाता रहा!!!!!!

2 comments:

  1. ur poetry is right but then plz check ur spellings too since it's in hindi

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  2. Dhanyawaad sir ji aapne meri galti batayi......

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