एहसासे मोहोबत
वक़्त सुकरात मुझको बनाता रहा
मेरा फन मुझ को अमृत पिलाता रहा
उसकी पलकों से अरिज पे जो गिरा
एक सितारा बहुत झिलमिलाता रहा
साडी सचाई चुप रही और वो
सब को झूटी कहानी सुनाता रहा
ये सियासत बनी एक तवायफ का घर
कोई आता रहा कोई जाता रहा
उनकी यादो के जख्म अब तक हरे
वक़्त मरहम पर मरहम लगाता रहा
सूखे पते की मानिंद थी खावाहिसे
वक़्त झुला सा उनको झुलाता रहा
तितलियों पर तो पाबन्दी लग गयी
वक़्त फूलो से खुशबू चुराता रहा
धीरे धीरे नयी एक गजल बन गयी
कौन एहसासे मोहोबत जगाता रहा!!!!!!
ur poetry is right but then plz check ur spellings too since it's in hindi
ReplyDeleteDhanyawaad sir ji aapne meri galti batayi......
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