बरसात की किसी सुबह जब हल्की ठण्ड
जिस्म को गुदगुदाती होगी
तो बिस्तर पर उनींदे पड़े जी करता होगा
की कोई चुपके से एक पतली सी चादर ओढा दे
या किसी शाम ऑफिस से परेशान लौटने पर
दिल चाहता होगा की कोई उलझी जुल्फों में
अंगुली ही पिरोये या फिर चांदनी रातो को
दिल ढूंढता होगा ऐसा साथी
जिसके साथ तारे गिनते सुबह हो जाये
गर ऐसे किसी काम की जरुरत है
तो मुझे इतने से काम पर रख लो.......
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