Wednesday, April 7, 2010

पागल II

कागज कागज हर्फ़ सजाया करता है
तन्हाई में सहर बसाया करता है
कैसा पागल शख्स है सारी सारी रात
दीवारों को दर्द सुनाया करता है
रो देता है अपने आप अपने ही बातो पर
फिर खुद को अपने आप हँसाया करता है....

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